रिजर्व बैंक [आरबीआइ] के नए गवर्नर रघुराम राजन की कोशिशें जल्द ही देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 10 अरब डॉलर की वृद्धि कर सकती हैं। बैंकों के फॉरेन करेंसी नान रेजिडेंट [एंफसीएनआर] फंड को रिजर्व बैंक में तीन साल तक जमा कर उस पर ब्याज कमाने का मौका दे दिया है। इसे आरबीआइ की विदेशी मुद्रा प्रवाह बढ़ाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
बुधवार को ही राजन ने रिजर्व बैंक गवर्नर पद का कार्यभार संभालने के बाद कई एलान किए थे। उन्हीं में से एक बैंकों को एफसीएनआर फंड के स्वैप का प्रस्ताव भी था। इसके तहत बैंकों के एफसीएनआर फंड को रिजर्व बैंक के पास तीन साल के लिए रखने पर सालाना 3.5 फीसद ब्याज का प्रावधान है। जानकारों का मानना है कि इससे बैंक ज्यादा एफसीएनआर डिपॉजिट लाने को प्रोत्साहित होंगे। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के अनुमान के मुताबिक इससे देश में जल्द ही 8 से 10 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा की आवक संभव है। बैंक का कहना है कि इससे अनिवासी भारतीयों को रुपये की कीमत में हो रहे तेज उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचाने में भी मदद मिलेगी।
रिजर्व बैंक के उपायों पर लगभग इसी तरह की प्रतिक्रिया मार्गन स्टेनले ने भी दी है। इसके मुताबिक इससे न सिर्फ देश में डॉलर का प्रवाह बढ़ेगा, बल्कि इससे बाजार में फंडिंग का दबाव भी कम होगा। मेरिल लिंच का कहना है कि आरबीआइ की एफसीएनआरबी से संबंधित नई स्कीम रुपये की कीमत को स्थिरता प्रदान करेगी। इससे पहले 1998 में रिसर्जेट इंडिया बांड और 2001 में इंडिया मिलेनियम डिपॉजिट भी रुपये की कीमत में गिरावट रोकने में कामयाब रहे थे। इन दोनों स्कीमों में सरकार विदेशों से पांच पांच अरब डॉलर जुटाने में सफल रही थी।
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